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Thursday, October 6, 2011

जो कुछ भी है तू, बस, तेरी माँ का ही है असर.

हो देवता या हो कोई जन्नत का फ़रिश्ता.

पैदा न कर सकेगा खून-ओ-दूध का रिश्ता .

माँ ! तूने अपने खून से ही दूध बनाकर.

पाला है प्यार से खुद अपना दूध पिलाकर.

तू है कहीं जन्नत में यहाँ मै ज़मीन पर.

फिर भी तू मेरे पास है जैसे मेरे ही घर.

बांहों में यूँ लिपटाके मुझे रात को सोना.

बेशर्त मुहब्बत में हरिक पल ही भिगोना.

हर चीज़ ही पाने को मेरा जिद में वो रोना.

सब कुछ मुझे देने को तेरे चैन का खोना.

हर साँस मेरे दिल को देके जाती है खबर.

जो कुछ भी है तू, बस, तेरी माँ का ही है असर.


BY ज्ञान गुरु  कौशिक 

Wednesday, October 5, 2011

जय श्री राम



राम ही तो करुणा मेँ है शांति मेँ राम है,
राम ही एकता मेँ प्रगति मेँ राम है,
राम तो भक्तोँ के और शत्रु के भी चिँतन मेँ है,
देख तज के पापी रावण राम तेरे मन है,
राम तेरे मन मेँ है राम मेरे मन मेँ हैँ,
राम तो घर घर मेँ है राम हर आंगन मेँ है,
मन से रावण जो निकाले राम उसके मन मेँ है...
सत्य एवं धर्म की विजय पर आप सभी को बधाई

Monday, October 3, 2011

सोमवार व्रतकथा


सोमवार व्रतकथाहर हर महादेव जय महाकाल ..

पहले समय में किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था. दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था. नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे. इतना सब कुछ से संपन्न होने के बाद भी वह व्यापारी बहुत दुखी था, क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था. जिस कारण अपने मृत्यु के पश्चात् व्यापार के उत्तराधिकारी की चिंता उसे हमेशा सताती रहती थी.

पुत्र प्राप्ति की इच्छा से व्यापरी प्रत्येक सोमवार भगवान् शिव की व्रत-पूजा कि या करता था और शाम के समय शिव मंदिर में जाकर शिवजी के सामने घी का दीपक जलाया करता था. उसकी भक्ति देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया. भगवान शिव बोले- इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है. जो प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है.

शिवजी द्वारा समझाने के बावजूद मां पार्वती नहीं मानी और उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ति हेतु वे शिवजी से बार-बार अनुरोध करती रही. अंततः माता के आग्रह को देखकर भगवान भोलेनाथ को उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देना पड़ा. वरदान देने के पश्चात् भोलेनाथ मां पार्वती से बोले- आपके आग्रह पर मैंने पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे दिया परन्तु इसका यह पुत्र 16 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा. उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के स्वप्न में आए और उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की भी बात बताई.

भगवान के वरदान से व्यापारी को ख़ुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस ख़ुशी को नष्ट कर दिया. व्यापारी पहले की तरह सोमवार के दिन भगवान शिव का विधिवत व्रत करता रहा. कुछ महीनों के बाद उसके घर अति सुन्दर बालक जन्म लिया, घर में खुशियां भर गई. बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया परन्तु व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक ख़ुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था. जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए वाराणसी भेज दिया. लड़का अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति हेतु चल दिया. रास्ते में जहां भी मामा-भांजा विश्राम हेतु रुकते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते.

लम्बी यात्रा के बाद मामा और भांजा एक नगर में पहुंचे. उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह था, जिस कारण पूरे नगर को सजाया गया था. निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था. उसे भय था कि इस बात का पता चलने पर कहीं राजा विवाह से इनकार न कर दे. इससे उसकी बदनामी भी होगी. जब वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया. उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा.

वर के पिता ने लड़के के मामा से इस सम्बन्ध में बात की. मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली. लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी को विदा किया. शादी के बाद लड़का जब राजकुमारी से साथ लौट रहा था तो वह सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी के ओढ़नी पर लिख दिया- राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी पढ़ने के लिए जा रहा हूं और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है.

जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया. राजा सब बातें जानकार राजकुमारी को महल में रख लिया. उधर लड़का अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया और गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया. जब उसकी आयु 16 वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया. यज्ञ के समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए. रात को वह अपने शयनकक्ष में सो गया. शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेड़ू उड़ गए. सूर्योदय पर मामा मृत भांजे को देखकर रोने-पीटने लगा. आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे.

लड़के के मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती भी सुने. पार्वती ने भगवान से कहा- प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे. आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें. भगवान शिव ने पार्वती के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा तो भोलेनाथ पार्वती से बोले- यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था. इसकी आयु पूरी हो गई है. मां पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया. माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा.

शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया. समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा और उसने तुरंत ही लड़के और उसके मामा को पहचान लिया. यज्ञ के समाप्त होने पर राजा मामा और लड़के को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा-धन, वस्त्र आदि देकर राजकुमारी के साथ विदा कर दिया.

इधर भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे परन्तु जैसे ही उसने बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुआ. वह अपने पत्नी और मित्रो के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा. अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. पुत्र की लम्बी आयु जानकार व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ.

सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं. शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.

Saturday, October 1, 2011

शनिवार व्रतकथा


शनिवार व्रतकथा :

एक समय में स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न पर नौ ग्रहों में वाद-विवाद हो गया. यह विवाद इतना बढ़ा की आपस में भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई. निर्णय के लिए सभी देवता देवराज इन्द्र के पास पहुंचे और बोले- हे देवराज, आपको निर्णय करना होगा कि हममें से सबसे बड़ा कौन है. देवताओं का प्रश्न सुन इन्द्र उलझन में पड़ गए, फिर उन्होंने सभी को पृथ्वीलोक में उज्जयिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य के पास चलने का सुझाव दिया.

उज्जयिनी पहुंचकर जब देवताओं ने अपना प्रश्न राजा विक्रमादित्य से पूछा तो वह भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे क्योंकि सभी देवता अपनी-2 शक्तियों के कारण महान थे. किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी. अचानक राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- सोना, चांदी, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक व लोहे के नौ आसन बनवाए. धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवाकर उन्होंने सभी देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा.

देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा- आपका निर्णय तो स्वयं हो गया. जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वहीं सबसे बड़ा है. राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा- हे राजन, तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है. तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो, मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा. शनि देव ने कहा- सूर्य एक राशि पर एक महीने, चन्द्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं, लेकिन मैं किसी भी राशि पर साढ़े सात वर्ष तक रहता हूं. बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बचेगा. इसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ चले गए, परन्तु शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए.

विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्जयिनी नगरी पहुंचे. राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने को भेजा. घोड़े बहुत कीमती थे. अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस बारे में राजा विक्रमादित्य को बताया तो वह खुद आकर एक सुन्दर और शक्तिशाली घोड़ा पसंद किया.

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा जैसे ही उस घोड़े पर सवार हुए वह बिजली की गति से दौड़ पड़ा. तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर वहां राजा को गिराकर गायब हो गया. राजा अपने नगर लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा पर उसे कोई रास्ता नहीं मिला. राजा को भूख प्यास लग आई. बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला. राजा ने उससे पानी मांगा. पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी और उससे रास्ता पूछकर जंगल से निकलकर पास के नगर में चला गया.

नगर पहुंच कर राजा एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया. राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई. सेठ ने राजा को भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन पर ले गया. सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था. राजा को उस कमरे में छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर चला गया. तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी. राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई. सेठ ने जब हार गायब देखा तो उसने चोरी का संदेह राजा पर किया और अपने नौकरों से कहा कि इस परदेशी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो. राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि खूंटी ने हार को निगल लिया. इस पर राजा क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया. सैनिकों ने राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काट कर उसे सड़क पर छोड़ दिया.

कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे कोल्हू पर बैठा दिया. राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता. इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा. शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ऋतु प्रारंभ हुई. एक रात विक्रमादित्य मेघ मल्हार गा रहा था, तभी नगर की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस घर के पास से गुजरी. उसने मल्हार सुना तो उसे अच्छा लगा और दासी को भेजकर गाने वाले को बुला लाने को कहा. दासी लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया. राजकुमारी उसके मेघ मल्हार से बहुत मोहित हुई और सब कुछ जानते हुए भी उसने अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय किया.

राजकुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वह हैरान रह गए. उन्होंने उसे बहुत समझाया पर राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया. आखिरकार राजा-रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पड़ा. विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे. उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा- राजा तुमने मेरा प्रकोप देख लिया. मैंने तुम्हें अपने अपमान का दंड दिया है. राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की- हे शनिदेव, आपने जितना दुःख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना.

शनिदेव ने कहा- राजन, मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूं. जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत करके मेरी व्रतकथा सुनेगा, उसपर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी. प्रातःकाल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत ख़ुशी हुई. उसने मन ही मन शनिदेव को प्रणाम किया. राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई. तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी सुनाई.

इधर सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा. राजा ने उसे क्षमा कर दिया क्योंकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था. सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया. भोजन करते समय वहां एक आश्चर्य घटना घटी. सबके देखते-देखते उस खूंटी ने हार उगल दिया. सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया.

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्जयिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष के साथ उनका स्वागत किया. अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि शनिदेव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं. प्रत्येक स्त्री-पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रतकथा अवश्य सुनें. राजा विक्रमादित्य कि घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए. शनिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगी. सभी लोग आनंदपूर्वक रहने लगे.


Friday, September 30, 2011

माँ दुर्गा के विभिन्न मंत्र


  • विविध उपद्रवों से बचने के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र का जाप करते हुए करना चाहिए-


रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र |

दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ||

सनातन धर्म


सनातन धर्म


सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित किया गया नहीं है।
यह पुराने समय से चले आ रहे अलग-अलग मतों और आस्थाओं से मिलकर बना है।
समय के साथ-साथ इस धर्म में ऐसे नए विश्वास और मत जुड़ते गए, जो समय की कसौटी पर खरे थे।
इसलिए ही सनातन धर्म को एक विकासशील धर्म कहा जाता है। 

स्त्री धर्म – Duties of a Woman



  1. Manu says “Let a woman attend to her household duties most cheerfully and with great dexterity, keep her utensils and apparel clean, her home tidy, her furniture free from dust, all eatables pure, clean and free from dirt. Let her never be lavish in expenditure. Let her cooking be done so nicely that the food may act on the system like a good medicine and keep away disease. Let her keep a proper account of income and expenditure and show it to her husband, use her servants properly and see that nothing goes wrong in the house.” (Chapter V-50).

Significance of Navratri (नवरात्री का महत्व )



The word Navaratri means 'nine nights.' During Navaratri, we worship the goddesses Durga, Lakshmi, and Saraswati, in that order for three days each. The most important day is the 10th day, Vijayadashami. The word Vijayadashami means '10th day of victory.' I will tell you the significance of this festival. 

माँ दुर्गा १०८ नाम


 S. No.Durga NameMeaning
1DeviThe Deity
2DurgaThe Inaccessible
3TribhuvaneshwariGoddess of Sargya, Martya and Patal
4Yashodagarba SambhootaComing out from Yashoda's Womb
5NarayanavarapriyaIn liking of Narayana's Boons
6NandagopakulajataDaughter of the Nandagopa Race
7MangalyaAuspicious, Sacred
8KulavardhiniProgressor of the Race
9KamsavidravanakariWho made a threat to Kamsa
10AsurakshayamkariWho reduced the number Of Demons
11Shilathata VinikshibdaAt the time of birth, slammed by Kamsa
12AkashagaminiMove In the sky
13VasudevabhaginiSister Of Vasudeva
14Divamalya VibhooshitaOrnamented with beautiful garlands
15DivyambaradharaBeautifully Robed
16Khadgaketaka DhariniWho hold Sword And Shield

Thursday, September 29, 2011

माँ दुर्गा वंदना



माँ दुर्गा वंदना 

भगवती भगवन की भक्ति करो परवान तुम 

अम्बे कर दो अमर जिसपे हो जाओ मेहरबान तुम 


काली काल के पंजे से तुम ही बचाना आ कर 

गौरी माँ गोदी में बिठाना अपना बालक जानकर 

चिंतपूर्णी माँ चिंता मेरी दूर तुम करती रहो 

लक्ष्मी लाखो भंडारे मेरे तुम भरती रहो माँ 


नैना देवी माँ नैनो की शक्ति को देना तुम बढ़ा माँ 

वैष्णो माँ विषय विकारो से भी लेना तुम बचा माँ 

मंगला मंगल सदा करना भवन दरबार में माँ 

चंडिका माँ चढ़ती रहे मेरी कला इस संसार में 


माँ भद्रकाली भद्र जनो से मिलाना तुम सदा 

ज्वाला माँ मेरी ईर्ष्या मिटाना ये करना कृपा 

चामुंडा माँ चमन पे अपनी दया दृस्टि करो 

माता मान इज्जत व् सुख सम्पति से भंडार भरो 
जय माता दी 

नवरात्रि में देवी माँ के पूजन में विशेष उपाय

*देवी के पूजन में तिथियों के अनुसार भोग*


अपने मन वांछित फल की प्राप्ति के लिए नवरात्रा में विशेष उपाय :


  1. प्रतिपदा तिथि में भगवती जगदम्बा की गोघृत से पूजा होनी चाहिये! अर्थात षोडशोपचार से पूजन करके नैवेद्य के रूप में उन्हें गाय का घृत अर्पण करना चाहिये एवं फिर ब्राह्मण को दे देना चाहिये! इस से मनुष्य कभी रोगी नहीं होता!
  2. द्वितीया तिथि को पूजन करके भगवती जगदम्बा को चीनी का भोग लगावे और ब्राह्मण को दे दे!
  3. तृतीया के दिन भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होनी चाहिये एवं पूजन के उपरान्त वह दूध ब्राह्मण को देना उच्चित है! यह सम्पूर्ण दुखों से मुक्त होने का एक परम साधन है!

माँ दुर्गा मंत्र


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।  शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।। 

शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे। सर्वस्यातिहरे देवि नारायण नमोस्तुते।

      सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।

सर्वाबाधा विर्निर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।
मा दुर्गा आपकी सभी मनोकामना पूर्ण करे .
जय माता दी


Tuesday, February 8, 2011

माँ शारदा स्तुति


हे समस्त स्वर की साम्राज्ञी !
हे चिन्मय श्रुति - सिन्धु. .
देवि, तुम्हारी , सजल शुभ्रता
निर्मित करती इंदु.

शुभ्र तुम्हारा वर्ण, शुभ्र हैं
वस्त्र , शुभ्र है हास्य.
शुभ्र हंस की शुभ्र काकली,
शुभ्र स्वरों का लास्य .