पृथ्वी पर कर्म से ही हमारे पाप और पुण्य का लेखा-जोखा तैयार होता है। श्री कृष्ण ने कहा कि संसार में कोई भी जीव एक पल भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है। इसलिए जाने अनजाने कभी न कभी हम सभी पाप कर्म कर बैठते हैं। और पाप कर्मों से मुक्ति के लिए भी कर्म करना पड़ता है।
शास्त्रों में कई ऐसे उपाय यानी कर्म बताए गये हैं जिनसे पाप कर्मों के प्रभाव से मुक्ति मिल सकती है। ऐसा ही एक कर्म है माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत। इस एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। अपने नाम के अनुसार इस एकादशी में छः प्रकार से तिल का उपयोग करना श्रेष्ठ बताया गया है।