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Monday, January 27, 2014

एकादशी व्रत में तिल खाने और लगाने के फायदे

पृथ्वी पर कर्म से ही हमारे पाप और पुण्य का लेखा-जोखा तैयार होता है। श्री कृष्ण ने कहा कि संसार में कोई भी जीव एक पल भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है। इसलिए जाने अनजाने कभी न कभी हम सभी पाप कर्म कर बैठते हैं। और पाप कर्मों से मुक्ति के लिए भी कर्म करना पड़ता है।

शास्त्रों में कई ऐसे उपाय यानी कर्म बताए गये हैं जिनसे पाप कर्मों के प्रभाव से मुक्ति मिल सकती है। ऐसा ही एक कर्म है माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत। इस एकादशी को षट‍‍तिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। अपने नाम के अनुसार इस एकादशी में छः प्रकार से तिल का उपयोग करना श्रेष्ठ बताया गया है।

Friday, January 24, 2014

राजा इल की कथा

कथा आज की नहीं बल्कि पुरानी और इसका उल्लेख पुराणों में है। कथा के अनुसार वैवस्वत मनु के पुत्र थे राजा इल। इल एक बार शिकार खेलने वन में गए। अनजाने में ही वह अम्बिका नामक वन में पहुंच गए।

अम्बिका वन भगवान शिव द्वारा शापित था। एक बार शिव और पार्वती इस वन में विहार कर रहे थे उसी समय ऋषियों का एक समूह वन में आ पहुंचा।

इससे पार्वती शर्मा गईं। शिव जी को ऋषियों का अचानक वन में प्रवेश करना अच्छा नहीं लगा और उन्होंने शाप दे दिया कि, शिव परिवार के अलावा अम्बिका वन में जो भी प्रवेश करेगा वह स्त्री बन जाएगा।

कार्तिक पूर्णिमा महत्व

सृष्टि के आरंभ से ही कार्तिक पूर्णिमा इसलिए है खास


सृष्टि के आरंभ से ही एक तिथि बड़ी ही खास रही है। यह तिथि है कार्तिक पूर्णिमा। इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों के लिए भी है। पुराणों की कथा के अनुसार भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली असुर का वध इसी दिन किया था।

इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली रूप में थे।
भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे पुनः सृष्टि का निर्माण कार्य आसान हुआ।

जनेऊ का महत्व

पुरुष यूं ही नहीं पहनते जनेऊ, कारण जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे : 

आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। 
इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ का धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्व है।

जनेऊ का निर्माण दो तूड़ियों से किया जाता है जिसमें तीन -तीन लपेट होते हैं। 
तीनों लपेट क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं के प्रतीक माने गए हैं। 
धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि जनेऊ धारण करने से शरीर शुद्घ और पवित्र होता है।